महेंद्रगढ़ का इतिहास - History of Mahendergarh
महेन्द्रगढ़ अपने खूबसूरत पर्यटक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। पहले यहां पर पृथ्वीराज चौहान के वंशज अंगपाल का साम्राज्य था। बाद में इस पर मराठों, झज्जार के नवाबों और ब्रिटिश शासकों ने भी शासन किया। आधुनिक महेन्द्रगढ़ की स्थापना १९४८ ई.
प्रमुख
आकर्षण
· जल महल:- महेन्द्रगढ़ में स्थित जलमहल बहुत खूबसूरत है। महल की दीवारों पर लिखे शिलालेखों के अनुसार इसका निर्माण 1591 ई. में शाह कुली खान ने कराया था। यह महल एक तालाब के बींचोबीच बना हुआ है। लेकिन अब यह तालाब पूरी तरह से सूख चुका है। महल में पांच छोटी-छोटी दुकानों का निर्माण किया गया है। पर्यटक इन दुकानों से खूबसूरत स्मृतिकाएं खरीद सकते हैं।
· चोर गुम्बद:- चोर गुम्बद का निर्माण जमाल खान ने कराया था। इसे नारनौल का साईनबोर्ड' के नाम से भी जाना जाता है। गुम्बद के निर्माण काल का अभी तक पता नहीं चला है। लेकिन इसका वास्तु शास्त्र शाह विलायत के गुम्बद से मेल खाता है। इस गुम्बद की आर्को का निर्माण अंग्रेजी के S वर्ण के आकार में किया गया है। कहा जाता है प्राचीन समय में यह चोर-डाकुओं के छुपने की जगह थी। इसीलिए इसका नाम चोर गुम्बद पड़ गया। इसके अंदर जाना मना है
· बीरबल का छाता:- बीरबल का छाता पांच मंजिला इमारत है और यह बहुत खूबसूरत है। पहले इसका नाम छाता राय मुकुन्द दास था। इसका निर्माण नारनौल के दीवान राय-ए-रायन ने शाहजहां के शासन काल में कराया था। प्राचीन समय में अकबर और बीरबल यहां पर ठहरे थे। उसके बाद इसे बीरबल का छाता नाम से जाना जाने लगा। इसकी वास्तुकला बहुत खूबसूरत है। देखने में यह बहुत साधारण लगता है क्योंकि इसकी सजावट नहीं की गई है। इसमें कई सभागार, कमरों और मण्डपों का निर्माण किया गया है। कथाओं के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इसके नीचे चार सुरंगे भी बनी हुई हैं। यह सुरंगे इसको जयपुर, दिल्ली, दौसी और महेन्द्रगढ़ से जोड़ती हैं।
· शाह विलायत का मकबरा:- इब्राहिम खान के मकबर के पास ही शाह विलायत का मकबरा बना हुआ है। इसके वास्तु शास्त्र में पर्यटक तुगलक काल की छवि देख सकते हैं, जो बहुत खूबसूरत है। यह पर्यटकों को बहुत पसंद आता है। प्रसिद्ध लेखक गुलजार के अनुसार इसकी स्तंभावली और गुम्बद का निर्माण आलम खान मेवाड़ी ने किया था।
· इब्राहिम खान का मकबरा:- इस मकबरे का निर्माण शेर शाह सूरी ने 1538-46 ई. में अपने दादा इब्राहिम खान की याद में कराया था। शेख अहमद नियाजी ने इस मकबरे के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके पास ही इनकी कब्रें भी बनी हुई हैं। मकबरा चौकोर आकार का है। यह मकबरा, चौकोर मकबरा शैली व पथान निर्माण शैली का बेहतरीन नमूना है।
· नसीबपुर:- नारनौल से 3 कि॰मी॰ की दूरी पर नसीबपुर स्थित है। यहां पर ब्रिटिश शासकों ने स्वतंत्रता सेनानियों का कत्ल किया था। कहा जाता है कि जिस समय यह रक्तपात हुआ उस समय यहां की धरती खून से लाल हो गई थी। उन स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देने के लिए यहां पर पार्क का निर्माण किया गया है। यह पार्क बहुत खूबसूरत है। पर्यटक इस पार्क में पिकनिक भी मना सकते हैं।
· शाह कुली खान का मकबरा:- नारनौल में स्थित शाह कुली खान का मकबरा बहुत खूबसूरत है। इसके निर्माण में सलेटी और लाल रंग के पत्थरों का प्रयोग किया गया है। यह मकबरा आठ कोणों वाला है। इसके वास्तु शास्त्र में पथान शैली का प्रयोग किया गया है। मकबर में त्रिपोलिया द्वार का निर्माण भी किया गया है। इस द्वार का निर्माण 1589 ई. में किया गया था। मकबरे के पास खूबसूरत तालाब और बगीचे भी हैं। तालाब और बगीचे का निर्माण पहले और मकबरे का निर्माण बाद में किया गया था। यह बगीचा बहुत खूबसूरत है। इसका नाम अराम-ए-कौसर है।
· चामुण्डा देवी मन्दिर:- राजा नौण कर्ण मां चामुण्डा देवी का भक्त था। उन्होंने ही इस मन्दिर का निर्माण कराया था। यह मन्दिर पहाड़ी की तराई में बना हुआ है। राजा नौण कर्ण के बाद इस क्षेत्र पर मुगलों ने अधिकार कर लिया। मुगलों ने चामुण्डा देवी के मन्दिर के पास ही एक मस्जिद का निर्माण कराया था। यह मस्जिद बहुत खूबसूरत है। मन्दिर के साथ पर्यटकों को यह मस्जिद भी बहुत पसंद आती है।
· कैलाश आश्रम मंदिर गुलावला (नारनौल):- नारनौल महेंद्रगढ़ सड़क पर स्थित गॉंव गुलावला में पहाड़ी की चोटी पर बना प्राचीन हनुमान जी का मंदिर लोगों की आस्था और विश्र्वास का केंद्र बना हुआ है। कहते हैं, इस पहाड़ी की चोटी पर पांडवों ने अपने अज्ञातवास के कुछ दिन बिताये थे और हनुमान जी की मूर्ति की स्थापना करके अपनी सफलता की कामना की थी। बाबा बजरंगी की कृपा से पांडवों का अज्ञातवास निर्विघ्न पूरा हुआ। तभी से लेकर आज तक लोग बड़ी श्रद्घा और विश्र्वास के साथ यहां पहाड़ की चोटी पर स्थापित बजरंग बली जी की प्रतिमा की पूजा-अर्चना कर, मन्नतें मांगते हैं।
वर्तमान में इस प्राचीन हनुमान मंदिर को कैलाश आश्रम के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र के महान संत बाबा खेतानाथ जी ने इस आश्रम को चमकाया। लोगों की श्रद्घा और आस्था का आलम इतना था कि गांव गुलावला के हर घर के सदस्य ने अपने सिर पर पत्थर, बजरी, सीमेंट, पानी और अन्य सामान रखकर एक भव्य आश्रम का निर्माण किया। यह आश्रम पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। चढ़ाई चढ़ कर जब मंदिर में पहुँचते हैं तो थकान का नामोनिशान तक नहीं रहता है। हनुमान जी की प्राचीन मूर्ति के सम्मुख बैठकर आराधना करते हैं तो ऐसा लगता है कि मानो चिरंजीवी हनुमान जी वहीं विरामान हैं। जो भी यहां आकर सच्चे दिल से मन्नत मांगता है, उसकी मुराद अवश्य पूरी होती है। मंदिर में श्री श्री 1008 श्री बाबा खेतानाथ, बाबा शुक्रनाथ, बाबा सेवानाथ जी की विशाल मूर्तियॉं भी लोगों की श्रद्घा का केंद्र हैं। मंदिर की दीवारों पर भगवान शंकर, नृसिंहावतार, हनुमान जी, मां भगवती, राम-दरबार, शिव-परिवार और स्वर्ग-नरक के सुंदर चित्र बने हैं, जो मंदिर की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं। दीवारों पर हनुमान चालीसा, गीता सार और चौपाइयां लिखी गई हैं, जो मंदिर के वातावरण को भक्तिमय बनाती हैं।
वर्तमान में आश्रम के धूणे पर बाबा संतोषनाथ जी विराजमान हैं। उनके संचालन में प्रतिदिन मंदिर में ज्ञान की धारा बहती रहती है। यहां हर मंगलवार को कीर्तन एवं भंडारा होता है और गुरु पूर्णिमा को विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है। बैसाख की सप्तमी को बाबा शुक्रनाथ जी की जयंती बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। सावन की शिवरात्रि को विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। कहते हैं कि सावन की शिवरात्रि को ही यहां पांडवों ने हनुमान जी की मूर्ति की स्थापना की थी। इसलिए इस दिन हनुमान जी यहां अवश्य पधारते हैं। हर त्योहार पर मंदिर को सजाया जाता है और भजन-कीर्तन किये जाते हैं।
हनुमान जी का मंदिर लोगों की श्रद्घा और आस्था का केंद्र बना हुआ है। यहां श्रद्घालुओं की भीड़ लगी रहती है। प्रतिदिन सुबह-शाम शंख बजाकर लोगों को आरती के लिए बुलाया जाता है।